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Education: Voices of Muslim women from last century (BBC Hindi) : Shweta Tripathi



https://www.youtube.com/watch?v=ArZBrSvjfmc


Published on 20 Jun 2016
ज़रा सोचिए क़रीब सौ साल पहले मुसलमान औरतें उर्दू में क्या लिखती थीं? क्या कहना चाहती थीं? आज के दौर में जब मुसलमान औरतों का ज़िक्र बुर्का, तीन तलाक़, इस्लामी फ़तवों या यूनीफ़ॉर्म सिविल कोड के संदर्भ में ही होता है, आपको जानकर हैरानी होगी कि बीसवीं सदी की शुरुआत में वो इसके इतर कितनी बातें कह रही थीं. हाल ही में एक नाटक 'हम ख़वातीन' ने उस दौर के कुछ लेखों को चुनकर दिल्ली में पेश किया. इस नाटक ने एक झलक दी बीसवीं सदी की शुरुआत में मुसलमान औरतों की ज़िंदगी की. ये वो दौर था जब मुसलमान लड़कियों ने स्कूल जाना बस शुरू ही किया था. इससे पहले घर में इस्लामी पढ़ाई तक सीमित लड़कियों को अब बाहर जाकर पढ़ने की इजाज़त दी जाने लगी थी. बीसवीं सदी की शुरुआत में आ रहे इस अहम बदलाव पर हो रही बहस की नब्ज़ पकड़ी ज़फ़र जहां बेगम ने अपने लेख, 'स्कूल की लड़कियां' में. इसमें स्कूल जाने वाली लड़कियों की नीयत पर शक़ और उन्हें मिलने वाली शिक्षा के मक़सद से जुड़ी शंकाओं पर सवाल उठाने की कोशिश की गई.

यहाँ इस्तेमाल हुए कुछ कठिन उर्दू शब्दों के अर्थ-
मुख़ालिफ़ीन- विरोधियों
ख़िलाफ़े मामूल- दस्तूर के ख़िलाफ़
उयूब- बुराइयाँ
वबा- आफ़त
आर- शर्मिंदगी
अज़ीज़ा- प्रिय
क़ौल- वक्तव्य
अम्दन- जान-बूझकर
शाहिद- गवाह
लक़ब- उपाधि
तज़किरा- वर्णन
तास्सुब- पक्षपात

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रसदार

मोहब्बत ज़िंदाबाद

 7 जुलाई को रसचक्र की नवीनतम प्रस्तुति मोहब्बत ज़िंदाबाद में प्रेम की 51 कविताओं का पाठ किया गया. रसखान से लेकर भिखारी ठाकुर, मंगलेश डबराल और रोमानियाई कवयित्री निना कास्सिआन, पोलिश कवि रुज़ेविच तक की कविताओं में प्रेम के रंगारंग रूप को पेश किया गया. पाठात्मक प्रस्तुति में शामिल साथी हैं - मैत्रेयी कुहु, आकाश गौतम, रिज़वाना फ़ातिमा, श्वेता त्रिपाठी, श्वेतांक मिश्रा, पूर्णिमा गुप्ता, पूर्वा भारद्वाज, अलका रंजन, वंदना राग और अपूर्वानंद. संकलन और चयन था पूर्वा भारद्वाज और रिज़वाना फ़ातिमा का. सहयोगी थे  नील माधव और अपूर्वानंद.

रसचक्र की नवीं बैठकी

27 मई 2017 को रसचक्र की नवीं बैठकी संपन्न हुई. बैठकी में लगभग चौदह लोगों ने शिरकत की. कई भाषाओँ की रचनाओं का पाठ किया गया जिनमें गद्य, पद्य तथा गीत भी शामिल थे. पढ़े जाने वाली रचनाओं में भारतीय और विदेशी भाषाओँ के कवि और लेखकों की रचनाएँ शामिल हैं. अशोक वाजपेयी, कुँवर नारायण और पाब्लो नेरुदा की अनूदित कविताओं का पाठ किया गया. मंटो के खतों के कई हिस्से भी इस बार की रसचक्र  की बैठकी का हिस्सा रहे, वहीँ कार्ल सगान के निबंध 'अ पेल ब्लू डॉट' का पाठ किया गया. रसचक्र की बैठकी का एक आकर्षण रहा टिम अर्बन द्वारा किया गया 'Fermi's paradox' का वर्णन. अलग-अलग तरह की आकाशगंगाओं में जीवन के चिह्न क्यों नहीं हैं, इस विषय पर बहुत दिलचस्प शैली में लिखी गई रचना है यह. 'कलामे निस्वाँ' से मिसेज़ सीन. मीम. दाल द्वारा लिखित ‘अनोखी शादियाँ’ का पाठ हुआ. सुभद्रा कुमारी चौहान के इतिहास से संबंधित स्मृतियों का ज़िक्र भी किया गया तो नेहरु की वसीयत और उनके पत्रों का पाठ भी किया गया. साथ में पद्मावत और सूरसागर के एक पद का गायन हुआ. अंत हुआ हिम

गाँधी पर नई प्रस्तुति के रिहर्सल की कुछ तस्वीरें

                  हर कतरा तूफान की रिहर्सल और टीम की मस्ती।