Skip to main content

Posts

Showing posts from 2017

गाँधी पर नई प्रस्तुति के रिहर्सल की कुछ तस्वीरें

                  हर कतरा तूफान की रिहर्सल और टीम की मस्ती।

रसचक्र चौदहवीं बैठकी

29 अक्टूबर, 2017 में रसचक्र की बैठकी का आयोजन किया गया. इसमें 14 लोगों ने हिस्सा लिया. बैठकी में गद्य और पद्य दोनों की रचनाओं का पाठ हुआ. बैठकी में जो रचनाएँ सुनाई गईं उनमें रसिकों ने विदेशी रचनाओं के अनुवाद के साथ भारतीय भाषाओँ की रचनाओं का अनुवाद भी पढ़ा. इसके साथ ही आंचलिक भाषा की मूल रचनाओं का पाठ किया गया जो रसिकों को काफी पसंद आया. श्रीलंका के अप्पादुराई मुत्तुलिंगम की लिखी तमिल कहानी का पाठ बैठकी में किया गया। पद्मा  नारायण द्वारा किए गए इस कहानी के अंग्रेज़ी अनुवाद (gravity tax) को उसी समय हिंदी में अनुदित करके रसिकों के सामने सुनाया गया. अलग तरह की फैंटेसी में लिखी गई इस कहानी को रसिकों से बहुत सराहना भी मिली।   बैठकी में डोगरी भाषा से अनुदित पद्मा सचदेव की कविताएँ रसिकों ने सुनीं । यह अनुवाद खुद पद्मा सचदेव ने ही किया था। सर्वेश्वर दयाल सक्सेना द्वारा किया हुआ विदेशी कविताओं का अनुवाद भी रसचक्र की बैठी में पढ़ा गया। इसमें जर्मन कवि का (हेन्स मैग्नस ऐसेंसबर्गर) अनुवाद शामिल है। मार्टिन निमोफोयलर के वाक्यांश का अनुवाद सुनना रसिकों के लिए नया अनुभव था। डॉ. प्रकाश उदय की भ

गाँधी पर केंद्रित नए शो की तैयारी के लिए अड्डेबाज़ी

गाँधी पर केंद्रित नए शो की तैयारी की कुछ तस्वीरें।  7-10-2017 को कैफे लोटा, प्रगति मैदान में हम सब स्क्रिप्ट को सुनने-सुनाने, उस पर सवाल करने में मशगूल थे।

रसचक्र तेरहवीं बैठकी

22 सितम्बर, 2017 को रसचक्र की तेरहवीं बैठकी सम्पन्न हुई। इस बार बैठकी का स्थान बदला हुआ था। बैठकी मयूर विहार फेज़ 1 में रखी गई थी। तेज़ बारिश के बावजूद रसिकों के उत्साह में कमी नहीं आई और बैठकी में शिरकत करने 9 लोग पहुँचे।  पढ़ी जाने वाली रचनाओं में गद्य और पद्य दोनों तरह की रचनाएँ थीं। मुक्तिबोध, शमशेर बहादुर सिंह, गुलज़ार, केदारनाथ सिंह, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ और अखिल की कविताओं का पाठ किया गया। इसके अतिरिक्त गद्य में 'रुकावट के लिए खेद नहीं है' बच्चों द्वारा रचनाएँ जो लॉ फोरम और सराय और अंत मे csd ने प्रकाशित की हैं से कहानी का एक अंश पढ़ा गया।   भोपाल हादसे पर छपी हुई डायरी से भी कुछ अंश पढ़े गए। अंत हुआ ग़ालिब और फ़ैज़ की नज़्म (कोई उम्मीद बर नहीं आती और आज बाज़ार में पाबजौलाँ चलो) से।  रसिकों का चयन सराहनीय रहा। हम उम्मीद करते हैं कि रसिक रचनाओं का चयन करते हुए विधा और भाषा की विविधता का खयाल रखेंगे।

रसचक्र बारहवीं बैठकी

19 अगस्त, 2017 को रसचक्र की बारहवीं बैठकी संपन्न हुई। हर बार की तरह इस बार भी गद्य और पद्य दोनों की रचनाएँ शामिल थीं। चंद्रकांत देवताले और उत्तर छायावाद के कवि रामगोपाल शर्मा रुद्र को उनकी रचनाओं के माध्यम से याद किया गया। इसके साथ कई और कवियों को सुनने का अवसर भी बैठकी में मिला। जैसे शमशेर बहादुर सिंह,अशोक वाजपेयी, अविनाश मिश्र, सुधांशु फिरदौस, राजनारायण दूबे आदि। साथ ही हबीब जालिब के अशआर के साथ उन अशआर से जुड़े किस्से भी रसिकों को सुनने के लिए मिले। दिलचस्प बात यह है कि हबीब जालिब के यहाँ कबीर को आधार बनाकर कई नज़्में लिखी गई हैं। जैसे 'रोए भगत कबीर, भया कबीर उदास'। उनकी मशहूर ग़ज़ल जिसका शीर्षक 'दीप जिसका महल्लात ही में जले' है उन्हीं के अंदाज़ में सुनने के लिए मिली। हिंदी, उर्दू और बुंदेली के साथ संस्कृत रचना का भी पाठ किया गया ।  अथर्ववेद से 'शाला' का वर्णन सुनने के लिए मिला जो बहुत रोचक था। उन मन्त्रों का संस्कृत से हिंदी में अनुवाद राधावल्लभ त्रिपाठी ने किया है।                                       विद्यानिवास मिश्र की दक्षिण भारत की यात्रा