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रसचक्र यानी रसिकों की अड्डेबाज़ी

रसचक्र को हम रसिकों की अड्डेबाज़ी कहते हैं. रसास्वादन करने और कराने के मकसद से 2016 में भिन्न भिन्न क्षेत्र में सक्रिय कुछ लोगों ने मिलकर यह समूह बनाया है. मुख्यतः इसका कार्यक्षेत्र दिल्ली है. इसे औपचारिक संस्था का ढाँचा नहीं दिया गया है और मिल-जुलकर ही यह समूह चल रहा है. 

इसमें हम नाटकीय पाठ Performative Reading के माध्यम से अलग-अलग किस्म की रचनाओं को लोगों के सामने लेकर आना चाहते हैं. हमारा फोकस मुख्यतः कथेतर गद्य रचनाओं (Non-Fiction) पर है, लेकिन आगे चलकर रसचक्र का  अन्य रचनाओं     को भी  प्रस्तुत करने का इरादा है. फिलहाल हमने स्त्री लेखन पर केंद्रित दो प्रस्तुतियाँ की हैं - 'हम ख़वातीन' और 'सुल्ताना का सपना'. हम नाटकीय पाठ के माध्यम से केवल साहित्य और कला के अनुरागी तक ही नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग और समुदाय तक चुनींदा रचनाओं को पहुँचाना चाहते हैं.

रसचक्र की गतिविधियाँ नियतकालीन नहीं हैं, फिर भी अनियम का भी एक नियम होगा. नाटकीय पाठ के अलावा गद्य-पद्य की रचनाओं को सुनने-सुनाने की बैठकी भी हमने शुरू की है. अलग-अलग भाषाओं की रचना का आस्वादन होगा, यही उम्मीद है. गायन भी इसमें शामिल है. यह छोटी बैठकी कहीं भी की जा सकती है. अभी तक मिल-जुलकर ऐसी चार बैठकी लगी है.

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रसदार

मोहब्बत ज़िंदाबाद

 7 जुलाई को रसचक्र की नवीनतम प्रस्तुति मोहब्बत ज़िंदाबाद में प्रेम की 51 कविताओं का पाठ किया गया. रसखान से लेकर भिखारी ठाकुर, मंगलेश डबराल और रोमानियाई कवयित्री निना कास्सिआन, पोलिश कवि रुज़ेविच तक की कविताओं में प्रेम के रंगारंग रूप को पेश किया गया. पाठात्मक प्रस्तुति में शामिल साथी हैं - मैत्रेयी कुहु, आकाश गौतम, रिज़वाना फ़ातिमा, श्वेता त्रिपाठी, श्वेतांक मिश्रा, पूर्णिमा गुप्ता, पूर्वा भारद्वाज, अलका रंजन, वंदना राग और अपूर्वानंद. संकलन और चयन था पूर्वा भारद्वाज और रिज़वाना फ़ातिमा का. सहयोगी थे  नील माधव और अपूर्वानंद.

रसचक्र की नवीं बैठकी

27 मई 2017 को रसचक्र की नवीं बैठकी संपन्न हुई. बैठकी में लगभग चौदह लोगों ने शिरकत की. कई भाषाओँ की रचनाओं का पाठ किया गया जिनमें गद्य, पद्य तथा गीत भी शामिल थे. पढ़े जाने वाली रचनाओं में भारतीय और विदेशी भाषाओँ के कवि और लेखकों की रचनाएँ शामिल हैं. अशोक वाजपेयी, कुँवर नारायण और पाब्लो नेरुदा की अनूदित कविताओं का पाठ किया गया. मंटो के खतों के कई हिस्से भी इस बार की रसचक्र  की बैठकी का हिस्सा रहे, वहीँ कार्ल सगान के निबंध 'अ पेल ब्लू डॉट' का पाठ किया गया. रसचक्र की बैठकी का एक आकर्षण रहा टिम अर्बन द्वारा किया गया 'Fermi's paradox' का वर्णन. अलग-अलग तरह की आकाशगंगाओं में जीवन के चिह्न क्यों नहीं हैं, इस विषय पर बहुत दिलचस्प शैली में लिखी गई रचना है यह. 'कलामे निस्वाँ' से मिसेज़ सीन. मीम. दाल द्वारा लिखित ‘अनोखी शादियाँ’ का पाठ हुआ. सुभद्रा कुमारी चौहान के इतिहास से संबंधित स्मृतियों का ज़िक्र भी किया गया तो नेहरु की वसीयत और उनके पत्रों का पाठ भी किया गया. साथ में पद्मावत और सूरसागर के एक पद का गायन हुआ. अंत हुआ हिम

गाँधी पर नई प्रस्तुति के रिहर्सल की कुछ तस्वीरें

                  हर कतरा तूफान की रिहर्सल और टीम की मस्ती।