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रसचक्र बारहवीं बैठकी

19 अगस्त, 2017 को रसचक्र की बारहवीं बैठकी संपन्न हुई। हर बार की तरह इस बार भी गद्य और पद्य दोनों की रचनाएँ शामिल थीं। चंद्रकांत देवताले और उत्तर छायावाद के कवि रामगोपाल शर्मा रुद्र को उनकी रचनाओं के माध्यम से याद किया गया।




इसके साथ कई और कवियों को सुनने का अवसर भी बैठकी में मिला। जैसे शमशेर बहादुर सिंह,अशोक वाजपेयी, अविनाश मिश्र, सुधांशु फिरदौस, राजनारायण दूबे आदि। साथ ही हबीब जालिब के अशआर के साथ उन अशआर से जुड़े किस्से भी रसिकों को सुनने के लिए मिले। दिलचस्प बात यह है कि हबीब जालिब के यहाँ कबीर को आधार बनाकर कई नज़्में लिखी गई हैं। जैसे 'रोए भगत कबीर, भया कबीर उदास'। उनकी मशहूर ग़ज़ल जिसका शीर्षक 'दीप जिसका महल्लात ही में जले' है उन्हीं के अंदाज़ में सुनने के लिए मिली।





हिंदी, उर्दू और बुंदेली के साथ संस्कृत रचना का भी पाठ किया गया। अथर्ववेद से 'शाला' का वर्णन सुनने के लिए मिला जो बहुत रोचक था। उन मन्त्रों का संस्कृत से हिंदी में अनुवाद राधावल्लभ त्रिपाठी ने किया है।

                                     

विद्यानिवास मिश्र की दक्षिण भारत की यात्रा से संबंधित पत्र भी सुनने का मौका मिला रसिकों को।

 


 


रसचक्र की इस बैठकी का मुख्य आकर्षण रहा पटना के वरिष्ठ रंगकर्मी विनोद कुमार द्वारा 'अमृतसर आ गया है' का प्रदर्शन। प्रदर्शन इन अर्थों में खास था कि यह बिना रंगमंचीय उपकरणों के खुले मंच पर किया गया था। इसके निर्देशक हैं परवेज़ अख्तर। हिन्दुस्तान के बँटवारे के समय के दंगों की बात करते हुए इस प्रदर्शन ने आसमान के रंग को और गहरा कर दिया था। प्रदर्शन की कुछ तस्वीरें -


 
 


रसिकों की रचनाओं का चयन विविधता लिए हुए था और इस लिहाज़ से बहुत सराहनीय था।  हम आगे भी इस वैविध्य का स्वागत करते हैं। 


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रसदार

मोहब्बत ज़िंदाबाद

 7 जुलाई को रसचक्र की नवीनतम प्रस्तुति मोहब्बत ज़िंदाबाद में प्रेम की 51 कविताओं का पाठ किया गया. रसखान से लेकर भिखारी ठाकुर, मंगलेश डबराल और रोमानियाई कवयित्री निना कास्सिआन, पोलिश कवि रुज़ेविच तक की कविताओं में प्रेम के रंगारंग रूप को पेश किया गया. पाठात्मक प्रस्तुति में शामिल साथी हैं - मैत्रेयी कुहु, आकाश गौतम, रिज़वाना फ़ातिमा, श्वेता त्रिपाठी, श्वेतांक मिश्रा, पूर्णिमा गुप्ता, पूर्वा भारद्वाज, अलका रंजन, वंदना राग और अपूर्वानंद. संकलन और चयन था पूर्वा भारद्वाज और रिज़वाना फ़ातिमा का. सहयोगी थे  नील माधव और अपूर्वानंद.

रसचक्र की नवीं बैठकी

27 मई 2017 को रसचक्र की नवीं बैठकी संपन्न हुई. बैठकी में लगभग चौदह लोगों ने शिरकत की. कई भाषाओँ की रचनाओं का पाठ किया गया जिनमें गद्य, पद्य तथा गीत भी शामिल थे. पढ़े जाने वाली रचनाओं में भारतीय और विदेशी भाषाओँ के कवि और लेखकों की रचनाएँ शामिल हैं. अशोक वाजपेयी, कुँवर नारायण और पाब्लो नेरुदा की अनूदित कविताओं का पाठ किया गया. मंटो के खतों के कई हिस्से भी इस बार की रसचक्र  की बैठकी का हिस्सा रहे, वहीँ कार्ल सगान के निबंध 'अ पेल ब्लू डॉट' का पाठ किया गया. रसचक्र की बैठकी का एक आकर्षण रहा टिम अर्बन द्वारा किया गया 'Fermi's paradox' का वर्णन. अलग-अलग तरह की आकाशगंगाओं में जीवन के चिह्न क्यों नहीं हैं, इस विषय पर बहुत दिलचस्प शैली में लिखी गई रचना है यह. 'कलामे निस्वाँ' से मिसेज़ सीन. मीम. दाल द्वारा लिखित ‘अनोखी शादियाँ’ का पाठ हुआ. सुभद्रा कुमारी चौहान के इतिहास से संबंधित स्मृतियों का ज़िक्र भी किया गया तो नेहरु की वसीयत और उनके पत्रों का पाठ भी किया गया. साथ में पद्मावत और सूरसागर के एक पद का गायन हुआ. अंत हुआ हिम

गाँधी पर नई प्रस्तुति के रिहर्सल की कुछ तस्वीरें

                  हर कतरा तूफान की रिहर्सल और टीम की मस्ती।