शुरुआत ही हुई नामवर सिंह जी की रचना से. उनकी किताब वाद, विवाद, संवाद से 'विश्वविद्यालयों में हिंदी' नामक निबंध का पाठ किया गया।
हरिशंकर परसाई को पुनः बैठकी में सुनने का अवसर मिला। लेख का नाम था 'भारतीय जनता पार्टी का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन'। वहीं गाँधी जी द्वारा लिखे गए लेख का भी पाठ किया गया।
वहीं प्रेमचंद के विविध प्रसंग में संकलित लेख 'मजनूँ' का पाठ रसिकों के लिए बहुत दिलचस्प रहा। पहली बार बैठकी में शामिल एक साथी ने स्वरचित कहानी सुनाई जिसे सहृदयतापूर्वक सबने चाव से सुना।
जिन कवियों की कविताओं का पाठ बैठकी में किया गया वे थे मुक्तिबोध, कुँवर नारायण, मख़्दूम मोहिउद्दीन, नज़ीर अकबराबादी, अदम गोंडवी, अशोक कुमार पाण्डेय और मैथिली कवि उदय चंद्र झा। उदय चंद्र झा की यह कविता बिहार में हो रही मौजूदा राजनीतिक हलचल का पूरा विश्लेषण कर देती है। कविता का शीर्षक था 'गेला नीतीश आएला नीतीश'।
1920 में लिखे गए ताज साहिबा लाहौरी के लेख 'रानी मीराँ बाई' से बैठकी का अंत हुआ। इसका पाठ मुँहज़बानी किया गया और दो साथियों द्वारा मिलकर किया गया।
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