ज़रा सोचिए क़रीब सौ साल पहले मुसलमान औरतें उर्दू में क्या लिखती थीं? क्या कहना चाहती थीं?
आज के दौर में जब मुसलमान औरतों का ज़िक्र बुर्का, तीन तलाक़, इस्लामी फ़तवों या यूनीफ़ॉर्म सिविल कोड के संदर्भ में ही होता है, आपको जानकर हैरानी होगी कि बीसवीं सदी की शुरुआत में वो इसके इतर कितनी बातें कह रही थीं.
हाल ही में एक नाटक 'हम ख़वातीन' ने उस दौर के कुछ लेखों को चुनकर दिल्ली में पेश किया. इस नाटक ने एक झलक दी बीसवीं सदी की शुरुआत में मुसलमान औरतों की ज़िंदगी की.
ये वो दौर था जब मुसलमान लड़कियों ने स्कूल जाना बस शुरू ही किया था.
https://www.bbc.com/hindi/india/2016/06/160620_hum_khawateen_muslim_women_da
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