गद्य में पढ़ी जानेवाली रचनाओं में हरिशंकर परसाई का व्यंग्य 'आवारा भीड़ के खतरे' शामिल था. यह निबंध समसामयिक समय की स्थिति को धारदार तरीके से व्यक्त कर रहा था. इसके साथ ही नासिरा शर्मा के यात्रा वृतांत ('जहां फव्वारे लहू रोते हैं') से एक अंश का पाठ किया गया. यह अंश ईरान की क्रांति के विषय में था. बैठकी में कृष्ण चन्दर द्वारा लिया गया ख़्वाजा अहमद अब्बास का साक्षात्कार पढ़ा गया. इस साक्षात्कार में अब्बास की बेबाकी से रसिकों का बखूबी परिचय होता है.
अंत हुआ अवधी लोकगीत 'सइयाँ मिले लरकैयां, मैं का करूँ' से. रसिकों ने भाषा और रचनाओं के चयन में विविधता पर तैयारी की थी जिसका प्रभाव दिख रहा था. इस विविधता की लगातार ज़रूरत है और यही हमारा मकसद भी है. अलग-अलग प्रदेशों की दूसरी भाषाओं की रचनाओं का चयन आगे भी रसिक करते रहेंगे, इसकी हम आशा करते हैं.
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