24 जून, 2017 को रसचक्र की दसवीं बैठकी संपन्न हुई. बैठकी में लगभग 17 लोगों ने शिरकत की. बैठकी में जिन रचनाओं का पाठ किया गया उनमें हर बार की तरह लेख, गीत-कविता, कहानी, संस्मरण, यात्रा वृत्तांत, साक्षात्कार आदि शामिल थे. पढ़ी जानेवाली रचनाओं में कई भारतीय भाषाओं की रचनाएँ थीं. निराला, शमशेर बहादुर सिंह, राहत इंदौरी, राकेश रंजन, बल्ली सिंह चीमा की कविताओं का पाठ किया गया. छत्तीसगढ़ की एक कविता (त्यावस किसान) का पाठ छत्तीसगढ़ी भाषा में किया गया. गद्य में पढ़ी जानेवाली रचनाओं में हरिशंकर परसाई का व्यंग्य 'आवारा भीड़ के खतरे' शामिल था. यह निबंध समसामयिक समय की स्थिति को धारदार तरीके से व्यक्त कर रहा था. इसके साथ ही नासिरा शर्मा के यात्रा वृतांत ('जहां फव्वारे लहू रोते हैं') से एक अंश का पाठ किया गया. यह अंश ईरान की क्रांति के विषय में था. बैठकी में कृष्ण चन्दर द्वारा लिया गया ख़्वाजा अहमद अब्बास का साक्षात्कार पढ़ा गया. इस साक्षात्कार में अब्बास की बेबाकी से रसिकों का बखूबी परिचय होता है. अंत हुआ अवधी लोकगीत 'सइयाँ मिले लरकैयां, मैं का कर...